आजा मौसमे बहार तू कहाँ | ढूंढ़ते तेरे बागवां ||
खुशियों के कोनों से आज राग छू गए ,
भूली कहानी से प्राण फिर से आ गए |
रंग क्या बदलते है थोड़ी देर देखना ,
दास्ताँ बनेगी ये धरा स्वयं तू देखना ||
गाफिल न ऐसे खेलेंगे आसमां - और ना रहेंगे मेजबाँ || १ ||
उछाला है कांटो पे फूलों ने पराग है ,
नई जिन्दगी के हाथों में चिराग है |
गोद है आभाव की प्रीत थपथपा रहे ,
जिन्दगी की दावतों में मौज को बुला रहे |
चले जा रहे लहलहाते गुलिस्तां - इंतजारी में बेजुबां || २ ||
कदमो के आगे है लम्बी -लम्बी मंजिले ,
झूमती नशे में ये छोटी-छोटी महफिले |
मेरे दिल की धडकनों पे पाँव धरके देखले ,
देखले इस जुए में दांव दे के देखले |
जा रहे है कौम के लदे कारवाँ - जिंदादिल है नौजवाँ || ३ ||
12 सितम्बर 1965
स्वतंत्रता समर के योद्धा : महाराज पृथ्वी सिंह कोटा
क्या हुआ जो रात का
आजा मौसमे बहार तू कहाँ
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झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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bahut khoob kaafi kuch seekhne ko milta hai in rachnaon se...
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