छुप बैठा कोई रे जीवन सितार में
जाने वो कैसे उतरे स्वर के निखार में ||
इक रात ऐसी थी गहरे अँधेरे में
जागी प्रतिज्ञा मेरी अपनों के घेरे में
सपने वे सोये मेरे गहरे विचार में ||
प्राण बटोही मेरे युग के प्रभात में
चलते रहे है किन्तु ठहर न रात में
भटके वे मेरे साथी मीठी बहार में ||
कितने सुखी वे दिन थे भुलाये न भूले
रखवारी बांहों के रे झूलों में झूले
गहरे समंदर तेरे , डूबे पुकार में ||
जैसे रखोगे वैसे खुश ही रहेंगे
ज़माने को कौम की रे कहानी कहेंगे
बिक चुके ऐसे सारे मोती बाजार में ||
11 दिसम्बर 1965
स्वतंत्रता समर के योद्धा : श्याम सिंह ,चौहटन
बीच युद्ध से लौटे राजा को रानी की फटकार|
छुप बैठा कोई रे
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झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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nice poem
प्राण बटोही मेरे युग के प्रभात में
चलते रहे है किन्तु ठहर न रात में
भटके वे मेरे साथी मीठी बहार में ||
सुंदर गीत-आभार