सरल है फूलों पे सोना

सरल है फूलों पे सोना काम , काँटों से यहाँ |
किन्तु देखो किस मजे में जा रहा है कारवाँ ||

ये मुसाफिर वे नहीं जिनको सहारा चाहिए
सुनलो हमको बंदगी का बस इशारा चाहिए
है विदाई की ण रस्मे , प्यार का स्वागत कहाँ ||

है न लेखा कौन साथी है या चल दिए
दीप का जीवन है केवल नित्य जलने के लिए
जलते-जलते हो गई है , सब शिकायत बेजुबाँ ||

त्याग तप को युग से मिलती है सदा आलोचना
मौन उस पे रह के करते कौम की हम वन्दना
इन उमंगो के गवाह , केवल धरा औ आसमाँ ||

अलविदा दुनिया के लोगो ठहर हम सकते नहीं
दूर मंजिल का निमंत्रण राही पा रुकते नहीं
ये चरण ये खेह चाहे , भूल जाएगी जहाँ ||
10 नवम्बर 1965


स्वतंत्रता समर के योद्धा : श्याम सिंह ,चौहटन
मेरी शेखावाटी: गणगौर पर्व और उसका लोक जीवन में महत्त्व

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


Comments :

3 comments to “सरल है फूलों पे सोना”
दिलीप said...
on 

sir aapki rachna adbhut hai....
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

ताऊ रामपुरिया said...
on 

बहुत लाजवाब.

रामराम.

yogiraj said...
on 

Sahab ki rachana samaj jagarn me mahtawpurn bhumika ada kar rahi hai.
ese vicharo se samaj ke yuvako ko jarur judana chahia. jai sang shakti
SHREE KSHATRIA YUVAK SANGH

Post a Comment

 

widget
चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
www.blogvani.com

Followers