बदलते द्रश्य -4

चित्रपट चल रहा था द्रश्य बदल रहे थे इन्ही द्रश्यों में मैंने देखा
एक दिन मैंने काका भतीजा की सलाह पर एक ताना सुना और देखा कि उस ताने पर पुरुषार्थ अंगडाई लेकर उठ खडा हुआ | मैंने बीदा को युक्ति से छापर का गढ़ लेते देखा | केवल तीन सौ सवारों के साथ कान्धल को विजय का आव्हान करते देखा | मैंने राम सिंह और उसके सामने झुकते हुए यवन शासित भटनेर के किले को देखा | शाही सेना के समक्ष मैंने दलपत सिंह का वीरता पूर्वक संग्राम देखा | अपने भाई का बदला लेने के लिए मैंने पद्म सिंह की तलवार म्यान से निकलते और वापस म्यान में जाते देखा | मैंने पत्थर के खम्भे सहित यवन के चार टुकड़े देखे | बीजापुर के युद्ध में मैंने उसी पद्म सिंह और उसके भाई केशरी सिंह को बिना सिर लड़ते देखा | मैंने करण सिंह को बादशाही बेडा तोड़ते देखा | मैंने महाराज गज सिंह की तलवार को भावलपुर पर बरसते देखा और अनुपगढ के किले को उसके चरणों पर लौटते देखा |मैंने सूरत सिंह की भावलपुर पर चलती हुई तलवार को देखा | बालू रेत पर वीरता की फुलवारी खिलते देखि | सुनसान जंगल धरा पर पौरुष के लेख लिखे जाते देखे | मैंने प्रथ्विराज और उसकी बेली क्रिसन रुकमनी री देखि | मथुरा के विश्राम घाट पर उस कवि की अंतिम पंक्ति उसकी समाधि को देखा | मैंने भगीरथ को बालू रेत में गंग नहर लाते देखा और मेरे मुंह से निकल पड़ा धन्य बीकाण ! (बीकानेर) धन्य !!
स्व.श्री तन सिंह जी ;;

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Comments :

2 comments to “बदलते द्रश्य -4”
अजय कुमार झा said...
on 

आज पहली बार पढा आपको ..अच्छा लगा ..

ताऊ रामपुरिया said...
on 

हमे तो आज पता चला इस ब्लाग का. एकदम खजाना ही बिखेर रखा है आपने. बहुत सुंदर कार्य है. बहुत आभार आपका इस कार्य के लिये.

रामराम.

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