चित्रपट चल रहा था द्रश्य बदल रहे थे इन्ही द्रश्यों में मैंने देखा
मेने तलवारे चलती देखि | अपने पैत्रिक और परम्परागत राज्यधिकारों की पुनः प्राप्ति के लिए मैंने राव सीहा की तलवार देखि , राव चुंडा की तलवार देखि | पीपाड़ की १४० कुमारियों के अपहरण पर राव सुजा की तलवार देखि | मुहम्मद बेगडा द्वारा सिणली की कुमारियों के अपहरण पर राव जगमाल मालावत की तलवार देखि | कई किलों को बनते हुए टूटते देखा और उनके बीच राव मालदेव की तलवार चमकते देखि | मुट्ठी भर बाजरे के लिए ललचाई हुई दिल्ली की सल्तनत को डगमगाते राव जैता और कुम्पा की तलवारे देखि | जालौर ,सिवाणा, भाद्राजून और पिपलोद के पास चन्द्र सेन और कल्ला की तलवारे देखि | आगरे के किले में मैंने एक कटार देखि थी और उसके बाद बल्लू चाम्पावत की उसी अमर सिंह के शव को लाने के लिए आगरे में तलवारे देखि | एक ही नहीं दूसरी बार फिर उसी बल्लू चाम्पावत की तलवार मैंने देबारी की घाटी में देखि | कन्याकुमारी से लेकर काबुल तक मैंने जसवंत सिंह की तलवारे देखि | दिल्ली में अजित सिंह की रक्षा के लिए खून से लथपथ हुए वीर दुर्गादास की तलवार देखि जिस पर क्रोधित होकर औरंगजेब ने अपनी कुरान फेंक दी थी | मैंने सोनग चाम्पावत की तलवार देखि | हाँ-हाँ मैंने कान्ह्ड्देव और सोनगरे विरमदेव को भी देखा | कभी हड्बू को देखा तो कभी पाबू को | कभी रामदेव को देखा तो कभी धनजी भींव जी को और मेरे मुंह से निकल पड़ा - धन्य मरुधरा ! धन्य !!
क्रमश:
बदलते द्रश्य -2
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धन्य हैं ऐसे रचनाकार ,प्रकाशित करने के लिए आभार