मिलेंगे बिखरे हुओं के निशां कहीं न कहीं
करीब आएगा मेरा आशियाँ कभी न कभी
किसी ने युग की शिराओं में बड़ी पीड़ भरी |
जमीन बीज उगाने को छाती चीर पड़ी ||
इधर भी आयेगा वो बागवां कभी न कभी
करीब ..........................................
चले है बचके सदा अंगारों की राहों से |
न मिलेगी रे मंजिल ठंडी सी आहों से ||
पर झुकेगा भूलों का आसमां कभी न कभी
करीब..........................................
खड़ा हूँ जिसके इशारे की प्रतीक्षा में अभी |
बुला के रूठ गया है नसीब मुझसे वही ||
मेहरबान होगा वो मेजबां कभी न कभी
करीब ..............................................
पता है चिंगारी को भी जलने वालों का
बताता होश कैसा रंग है इन प्यालों का
बलाएं लेगा कोई कद्रदां कभी न कभी
करीब..........................................
27 नवम्बर 1966
राजस्थान के लोक देवता कल्ला जी राठौड़
राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप को नमन |
मिलेंगे बिखरे हुओं के
Labels:
झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
वाह क्या बात है सिंह साहब