उसके परस बिन मनवा है सूना
जीवन में कैसी बहार रे ?
अन्तर में मेरे लवना थी लागी
सांचे में प्राण ढले रे ,
रैन अँधेरी थी देखा ये सपना
मिट गया कैसे सवेरे
फिसला कदम क्या खोई है सरगम
हो गई भार सितारा रे || उसके ....
निराशा में चित्त का रहा ना सहारा
माया को खूब जुटाई ,
चैन गया सो न लौटा कभी भी
झूटी पड़ी रे कमाई
मिसरी से मीठी थी यादें पुरानी
हो गई है मेरी मजार रे || उसके ....
मिले वे ही सांचे मिली नई बातें
खिल गयी कली कली
चुपके से कोई था मेरे नगर की
फिर गया गली गली
सपनों को प्राणों को जीवन को मेरे
दे गया स्नेह निखार रे || उसके ...
26 अप्रेल 1966
Rajput World: राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह जयंती का प्रकट निमंत्रण
नरेगा की वजह से महंगाई में वृद्धी
ताऊ डाट इन: ताऊ पहेली - 78 (Hazarduari Palace Museum, Murshidabad )
चुनाव प्रबंध , झगड़े और दलित उत्पीडन | Gyan Darpan ज्ञान दर्पण
उसके परस बिन मनवा है सूना
Labels:
झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
bahut khoob...