गायें घूम-घूम -घूम कितना पाया क्या खोया
गायें घूम-घूम -घूम कितना पाया क्या खोया
गायें घूम.............................................
जब से हो गया बिंदु सिन्धु का नदी कूप ना भाये |
गायें घूम ...................................................
पंडित जन पौथी में उलझे सुलझन खडी सिरहाने |
माया के फंदों में भटके लटके कई सयाने ||
सब कुछ खोने पर बन्दे ! हम अमर प्रीति फल पायें ||
गायें घूम........................................................
दूर खड़ा कोई कहता है, यह घाटे का सौदा |
पहचानेगा कौन भला यह होनहार का पौधा ||
जीवट का कोई दांव लगाने एक बार तो आये ||
गायें घूम ..................................................
अन्तर्यामी के हम हो गए जाने या अनजाने |
मानस पट पर चित्र बने है रंग भरे मन माने ||
करें प्रार्थना यही चितेरा हर जीवन में आये ||
गायें घूम............................................
सभी कहेंगे अर्थ सरल पर कोई कहे समझाओ |
इस गायन का सार हमें भी थोडा तो बतलाओ ||
गूंगा क्या समझाए वह तो केवल गुड़ को खाए ||
गायें घूम-घूम -घूम कितना पाया क्या खोया ||
29 नवम्बर 1966
याद आते है दूरदर्शन के वे दिन |
गायें घूम-घूम -घूम कितना पाया क्या खोया
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Jhankar,
झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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बहुत सुन्दर!