बहका दिया किसी ने

बहका दिया किसी ने पिला
कोई जाम मुझे अरमानों का ||

राह के काँटो में उलझ गया मैं तो
आँख लगी देखा पिछड़ गया मैं तो
किसने बताया पंथ मुझे युग युग के परवानों का ||

देखे मैंने सांचे रे जिन्दगी में ऐसे
आंसुओं को पूछा तो मुस्कराये कैसे
जितना भुलाया याद रहा ,कर्जा इन इंसानों का ||

कोई चाहे माने कि बहका दिया है
जान बूझकर मैंने ये जहर पिया है
मन प्राणों को चूम रहा अमृत है अहसानों का ||

किसी ने ये सोचा उबर गया हूँ मैं
मगर ऐसा डूबा कि गल गया हूँ मैं
मिट जाए मेरा नाम भले , रह जाए यजमानों का ||
१२ मई १९६६



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Comments :

2 comments to “बहका दिया किसी ने”
आचार्य उदय said...
on 

आईये जानें .... क्या हम मन के गुलाम हैं!

दिलीप said...
on 

bahut khoob

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