बनी ना बिगड़ेगी रे , कहानी रे मनवा
नसीबों की मारी रे
खिला दिए है फूलों को कांटो में भी हमने
युगों से भरी है पहली , धरा ने किलकारी रे ||
नसीबों की मारी रे ||
पीड़ा लेकर खुशियाँ देना कर्जा है जो उसका
कौम के चरणों में रहना सदा ही बलिहारी रे ||
नसीबों की मारी रे ||
बही अकेली की जग में पसीने की धारा जो
वो ही तो गंगा है जिसमे तेरी दुनिया सारी रे ||
नसीबों की मारी रे ||
स्वाति बिना मन का पंछी पीता नहीं पानी रे
प्यास की परीक्षा पहले फिर प्यासे की बारी रे ||
नसीबों की मारी रे ||
धोखा खावो हँसते जाना हमको कैसी चिंता रे
परमेश्वर करता है तेरी बन्दे रखवारी रे ||
सदा ही संवारी रे ||
18 मार्च 1966
एक राजा का साधारण औरत द्वारा मार्गदर्शन
आदरणीय श्री भैरों सिंह जी को अश्रुपूरित श्रधांजलि
बनी ना बिगड़ेगी रे
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झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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