पवन गुन गुना गीत गाता है
प्रीत उसकी युगों पुरानी है
आँधियों के इतिहास लम्बे तो
एक पौधे की भी कहानी है |
उगे है चीर धरा की छाती को
कोंपलों के अंदाज जंगल में
कोई मिटता कोई उगा करता है
नित्य ही सृष्टि के दंगल में
ये दरखतों की उंचाई तो -एक बीज की ही निशानी है |
क्या बोलेंगी मौसम बहारों की
पतझड़ के बाद आती है
जो दहक जाए संकल्प सोया तो
मरघटों में जान आती है
कुर्बान खुशनसीब होता है - मरना जिन्दों की जवानी है |
हम झुके राह से हट लें तो
धरा का सिंदूर पूंछ जाए
सुलगना धर्म मेरा है नहीं तो
अंगारे भी राख बन जाए
बेमानी न है बूंद स्वाति की - सीप मोती का एक मानी है |
14 मार्च 1966
आदरणीय श्री भैरों सिंह जी को अश्रुपूरित श्रधांजलि
गलोबल वार्मिंग की चपेट में आयी शेखावटी की ओरगेनिक सब्जीया
राजस्थान के लोक देवता कल्ला जी राठौड़
पवन गुन गुना गीत गाता है
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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bahut sundar ke josh dilane wali kavita...
"हम झुके राह से हट लें तो
धरा का सिंदूर पूंछ जाए
सुलगना धर्म मेरा है नहीं तो
अंगारे भी राख बन जाए
बेमानी न है बूंद स्वाति की - सीप मोती का एक मानी है |"
kya baat hai ji......bahut khoob..
kunwar ji,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...