आग से खेल वे दुःख से न पिघल जायेंगे |
हमसे आशाओं के राज बताए न गए
जो चले अरमान लिए वे जल के राख हुए
राख छोडो न कहीं शोले ही दाहक जायेंगे || आग.....
हमने तक़दीर के नक्शों में नए रंग भरे
गीत जीवन के बजाए स्वर के जाम ढले
राग छोड़ी जो वही यमराज बहक जायेंगे || आग...
बस्ती ही जाती है जंगल में ये नगरी
आज फूलों में बसंती मौसम की गंध भरी
हम खिले वीरान गुलसितां चहक जायेंगे || आग.....
सहना था वो सहके भी देख लिया
हमने क्या जुर्म किया संकल्प लिया
ठहरो आँखों के इशारे ही भभक जायेंगे || आग ....
5 मार्च 1966
स्वतंत्रता समर के योद्धा : राव गोपाल सिंह खरवा
स्वतंत्रता समर के योद्धा : श्याम सिंह ,चौहटन
आग से खेल वे
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बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
सहना था वो सहके भी देख लिया
हमने क्या जुर्म किया संकल्प लिया
ठहरो आँखों के इशारे ही भभक जायेंगे ||
बहुत अच्छी रचना पढवाने के लिए आभार
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
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