मिटे तो हुआ क्या

मिटे तो हुआ क्या निशानी है बाकी ,
कथाकार सोये कहानी है बाकी ||

शमाएँ जलाई रे अँधेरे मिटाए ,
बिछुड़े हों को भी रस्ते बताये |

पतंगों ने जल के कहानी बनाई ,
अभी किन्तु रस्में पुराणी है बाकी || १ ||

अनोखी कहानी है पतंगों की लेकिन ,
कैसे मिटेंगे इससे हमारे ये दुर्दिन |

भस्मी में उनके अंगार हो देखो,
अभी ज्वाला यज्ञों की जलानी है बाकी || २ ||

भ्रमों में जो भूले है ज्योति दिखानी ,
आत्मबल की खोई शक्ति जुटानी |

राही तो चलते है लेकिन उन्ही को ,
प्रतिज्ञा की बातें बतानी है बाकी || ३ ||

छिपाकर न रखना जो संचय हमारे ,
जरा सोचो गहरे तो तुम्ही ना तुम्हारे |

समझ में न आये तो यही बात जानो ,
अभी कई रातें जगानी है बाकी || ४ ||
11 दिसंबर 1965


स्वतंत्रता समर के योद्धा : महाराज पृथ्वी सिंह कोटा
एक राजा का साधारण औरत द्वारा मार्गदर्शन

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Comments :

3 comments to “मिटे तो हुआ क्या”
Udan Tashtari said...
on 

बहुत उम्दा.आभार!!

Dr. C S Changeriya said...
on 

BAHUT KHUB

BADHAI AAP KO IS KE LIYE

ताऊ रामपुरिया said...
on 

बहुत लाजवाब, शुभकामनाएं.

रामराम.

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