राही जब से आया मैं तेरी नगरिया
जगमग हो गई मेरी डगरिया
तेरे खेलों के मैदानों में मैंने हीरे मोती पाए ...मैंने हीरे मोती पाए
तेरे रूखे से जीवन में मैंने अमृत प्याले पाए... मैंने अमृत प्याले पाए
तेरे सपनों में रंग ,तेरे कष्टों में उमंग
जीवन का तो फल,मैं पा ही गया || राही.......
मैं तो कुंठाओं की गांठे बांधे आया तेरे द्वारे --मैं तो आया तेरे द्वारे
ज्योंही अंतर की गांठे सुलझी रे टूटे बंधन सारे -- त्योंही टूटे बंधन सारे
अब तो जाना है कहाँ,तेरा हो गया यहाँ
लाखों युगों की प्रीति पा ही गया || राही ...........
मैं तो जाऊँगा जब स्वर्ग लोक में भगवन वहां मिलेंगे -सुनलो भगवन ....
तब तो उन्हें कहूँगा स्वर्ग धरा पर,कहना कभी चलेंगे ..हम तो कहना ...
तेरा धाम तेरी ज्योति देखा नहीं रोग शोक
पूरे जीवन भर हरषा ही गया || राही..........
मांझी तुमसे पाया वो सभी अनूठा मैं ही नहीं अनोखा ..केवल मैं ही...
कितने विश्वासों का धनि बना पर जग से पाया धोखा ..मैंने जग....
जाने पहचाने तुम,अरमानों में भी तुम
मुझे एकता का अर्थ अब आ ही गया || राही ...........
4 दिसंबर 1966
एक कदम दूसरों के लिए
राही जब से आया मैं तेरी नगरिया
Labels:
Jhankar,
झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Comments :
Post a Comment