ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया
तुम कैसे पार लगोगे बिन हिम्मत बिन खवैया
लहरों को अब आजमाओ असमंजस है क्या बोलो
कितना बल है तूफानों में अपना भुजबल भी तोलो
फिर दांव लो ,पतवार लो,सागर के सीधे वार लो
ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया
हो जग में ज्योति जगानी जीवन में साध बड़ी हो
जुगनू की चमक से क्या हो अंतर में आग भरी हो
अंगार लो, संसार को , कुछ ऐसी ही मनुहार दो ,
ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया
साथ चलो तो आजाओ, हम भी राही मंजिल के
ये किस्मत के दुर्दिन है पार करेंगे मिल के
हो और के, सब छोडके , आ गले मिलें हम दौड़ के
ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया
है एक साध्य हमारा एक ध्वजा है भैया
एक ही रंग में रंगे है एक ही है खेवैया
मन एक हो, हम एक हों, हम सबके सपने एक हों
ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया
4 दिसम्बर 1966
एक कदम दूसरों के लिए
ये नैया बड़ी पुरानी और डगमग करती भैया
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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