मुझे ना तुमसे गिला है कोई
रहो हमारे ,चले भी जाओ,चले भी जाओ |
तुमने जो किया वो थोडा भी नहीं था |
जितना चुकाया वो कम भी नहीं था ||
जमाने आये हिसाब करने ,
बाकी बचा हो तो,वो ले भी जाओ ,ले भी जाओ ||
मैंने दिया वो स्वभाव मेरा |
कर्तव्य मेरा अधिकार तेरा ||
हंसके मिले थे हँसते भी रहना ,
ये ही दुआएं लेते भी जाओ ,लेते भी जाओ |
बातें वे भूली तो गम भी नहीं है |
रातें वे बीती तो चिंता नहीं है ||
प्याले पियेंगे जो हिस्से में आए
बोझा हो देना तो ,देते भी जाओ ,देते भी जाओ ||
अकिंचन नहीं हम उपेक्षित रहे हो |
मगर तुम हमारे जो साथी रहे हो ||
हम जैसा कोई न विश्वास काबिल ,
कर सको ये विश्वास ,करते भी जाओ ,करते भी जाओ ||
4 सितम्बर 1966
इंकलाब री आंधी(राजस्थानी कवि रेवतदान की एक शानदार रचना) |
वीर श्रेष्ठ रघुनाथ सिंह मेडतिया , मारोठ-1
मुझे ना तुमसे गिला है कोई
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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गिले शिकवों और विरह का संताप अच्छे शब्दों से बाँधा है बधाई