कौन थी आशा थी तुम्हारी जो अभी पानी थी
याद कैसी थी हमारी जो नहीं आनी थी
हमने क्या दखल दिया ,आप खुद ही आ बैठे
बचके जो निकल गए , राह को ही ले बैठे
साथ होने में बुराई भी नहीं मानी थी || याद कैसी ....
मन में जब पीर भरी कोई छिपाए कैसे
दृग से जो नीर ढले वो न रुलाये कैसे
आग सपनों की सभी में तो कभी जगानी थी || याद कैसी
जिए यों जीवन की तासीर नहीं जानोगे
आग ही जो बुझ चुकी तो राख से क्या पावोगे
लाग ऐसी थी नहीं यों ही लौ लगानी थी || याद .....
चाहो तो व्यर्थ उड़ो , पांव में जंजीरें है
मेरे आगोश में पड़ी मेरी तस्वीरें है
आज आये हो इकाई तो बड़ी पुरानी थी || याद ....
4 सितम्बर 1966
वीर श्रेष्ठ रघुनाथ सिंह मेडतिया , मारोठ-1
राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप को नमन |
कौन थी आशा थी तुम्हारी
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आनन्द आ गया,
acchha laga padh kar.
आप की इस रचना को शुक्रवार, 18/6/2010 के चर्चा मंच पर सजाया गया है.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका