बड़ा मीठा है मेरा दर्द

बड़ा मीठा है मेरा दर्द मगर मै पी नहीं सकता |
जहर है ये मगर जिसको पिए बिन जी नहीं सकता ||

कोई कहते है जिन्दी है बहारें जिंदगानी की
बहुत हमने अदाएं भी बुलाई थी जवानी की
कभी सपनो में आई हो ,मगर मै छू नहीं सकता || बड़ा ........

उड़ाने ली है मैंने तो गगन की घाटियों में भी
पाँखे हो चुकी है कालान्त सिर्फ दो मंजिलों में ही
धधकती आग है दिल में , मगर मै जल नहीं सकता || बड़ा ......

हारा हूँ थका हूँ मै सम्भालों कोई बाहों में
कोई मोती ना गिर जाए अरे आँखों की राहों में
जमाना है बड़ा बेरुख ,मगर मै मर नहीं सकता || बड़ा.....

नया बगीचा रे उम्मीदें लहलहाती है
हंसी दुनिया बिना इनके न मुझकों रंच भाती है
लगी जलने शमा भी अब पतंगा रह नहीं सकता || बड़ा ........

बुलाता खून मुझे अपना सदियों बाद सिमटने को
उठती हूक थी गहरी उमड़ी है भभकने को
जो थाती कौम की पाई उसे मै खो नहीं सकता || बड़ा.............

स्व. श्री तन सिंह जी : २४ जुलाई १९६३

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Comments :

2 comments to “बड़ा मीठा है मेरा दर्द”
Udan Tashtari said...
on 

स्व. श्री तन सिंह जी को पढ़ना बड़ा सुखद रहता है.

वाणी गीत said...
on 

बड़ा मीठा है मेरा दर्द मगर मै पी नहीं सकता ...
दर्द नहीं पिया तभी तो ग़ज़ल की रसधार बही ...!!

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