इतिहास की चोटों का एक दाग लिए फिरते है |
सीने के घराने में इक दर्द लिए फिरते है ||
हम भूल नही सकते महमूद तेरी गजनी |
अब तक भी आंखों में वह खून लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दाग लिए फिरते है |||
बाबर तेरे प्याले टूटे बता कितने ?
पर सरहदी का अफ़सोस लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दाग लिए फिरते है |||
झाला था इक माना कुरम था इक माना |
सोने के लगे जंग पै अचरज लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दर्द लिए फिरते है |||
कर्जन तेरी दिल्ली में अनमी था इक राना |
सड़कों पे गिरे ताजों के रत्न चुगा फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दर्द लिए फिरते है |||
आपस में लड़े भाई गैरों ने हमें कुचला |
अब मिलकर लड़ने का अरमान लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दाग लिए फिरते है |||
इतिहास की चोटों का
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स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
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