कितनी आग भरी तेरी प्यास में
इतनी गहरी घटाएँ चारों ओर है
मीठे बोल रहे दादुर मोर है
चातक बोल मोती कितने बंद तेरे विश्वास में ||
किस्मत को अंधियारे ने क्या खूब छला
मेहनत से निष्ठा से मेरा दीप जला
उसकी लौ पे जलता रे पतंगे तू किसकी आश में ||
पीड़ा कितनी मन के झूले झूल रही
तेरे बागों में खिलते क्यों फूल नहीं
कैसे रंग रंगे कि बिरंगे बसंती मास में ||
कोई नाप सका है नभ को सागर को
अपने आँगन में पाया नटवर नागर को
मैं तो जान गया अंतर फूल उठा उल्लास में ||
9 अप्रेल 1965
स्वतंत्रता समर के योद्धा : राव गोपाल सिंह खरवा |
वो कौम न मिटने पायेगी
कितनी आग भरी तेरी प्यास में
Labels:
Jhankar,
झंकार,
स्व.श्री तन सिंह जी कलम से
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अच्छा लगा पढ़कर..आभार.
बहुत बेहतरीन, आभार.
रामराम.
बहुत बेहतरीन, आभार.