चमका भी था गगन में

चमका भी था गगन में ,
खोया हुआ है गम में ,
तक़दीर का सितारा ||
तलवार के सहारे - चलते कदम हमारे |
खेली थी खानवा के चंडी सी वो समर में
पानी जो धार का था, कर गया किनारा ||
तक़दीर का सितारा || १ ||
मस्ती सदा लुटाई - आफत की धडकनों में ,
सुधरा जो त्याग से था - कष्टों के पालनो में |
इतिहास को सजा कर, हाथों से ही बिगाडा ||
तक़दीर का सितारा || २ ||
धरती बनी सुहागन - आश्रय था मेरे बल का ,
लुट गया है सिंदूर गैरों से मेरे घर का |
कमियां तो मेरी थी पर, मेरा चमन उजाडा ||
तक़दीर का सितारा || ३ ||
उजडे हुए चमन को - मिल के हम बसाये ,
मुझको माफ़ करदो - अक्षम्य है गुनाहे |
खाली है मेरी झोली , तू आखिरी सहारा ||
तक़दीर का सितारा || ४ ||
आँखे है खुश्क अब तो - आंसू नहीं है आता ,
बे आबरू पड़े है - जीना नहीं सुहाता |
ठहरे कभी तो होगा - मरने का इशारा ||
तक़दीर का सितारा || ५||
स्व. श्री तन सिंह जी : १९५९

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Comments :

1
Udan Tashtari said...
on 

आभार स्वं तन सिंह जी की यह नायाब रचना पढ़वाने का.

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