भूल भी थी कैसी फूल सी कोमल
सो न सकी तडफी प्राण सी
और जल नहीं जाता तो क्या मैं करता
पलकों की छाया में सोई हुई थी कहानी
आँख अनजानी में पहचाना था पानी
काश कि मेरी दर्द की उलझन,हो सकती आसान सी ||
दर्द जो बांटा तो मैं नहीं बोला
परदेशी आये पट मैंने खोला
मेरा कुछ नहीं ले के, मुझको ही लिया
बदले में केवल दर्द ही दिया
हार तो मेरे भाग्य पे दौड़ी,चढ़ आई अभियान सी ||
फूल चढ़ाओ ये प्रीटी अनादि है
भूल जाओ तुम भूलों को यादें जगाओ
शुलों के सिर पे कफ़न जलाओ
कर्म की मेरी जीवन यात्रा, शेष रही तूफ़ान सी ||
27 दिसंबर 1967
हठीलो राजस्थान-19 | Rajput World